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राष्ट्रीय विद्वत् सङ्गोष्ठी ललितपुर 20-22.9.2019( rashtriy vibvat Sangh Goshti lalitpur. U. P.)

     ललितपुर में त्रिदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् सङ्गोष्ठी सफलता पूर्वक सम्पन्न
हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण भारतीय संस्कृति के लिए घातक : आचार्य विनिश्चय सागर
कृतियों का हुआ विमोचन, देशभर से अनेक प्रमुख विद्वान हुए सङ्गोष्ठी में शामिल ललितपुर
  श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर जी गुरुदेव 
                     ससंघ के सान्निध्य में 
    - अटा जैन मन्दिर में दिगम्बर जैन पञ्चायत समिति -
                  ललितपुर के तत्त्वावधान में -
                  20 से 22 सितम्बर 2019 तक
त्रिदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् सङ्गोष्ठी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई।
 सङ्गोष्ठी के संयोजक डॉ श्रेयांस जैन बड़ौत और स्थानीय संयोजक डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर रहे।
 सङ्गोष्ठी में तीन दिन सुबह, दोपहर और रात्रि कालीन सत्रों में अनेक विद्वानों ने अपने शोधालेख प्रस्तुत किये।
प्रथम दिन 20 सितम्बर को उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता डॉ शीतलचन्द्र जैन प्राचार्य जी जयपुर ने की,
सञ्चालन डॉ श्रेयांस जैन जी बड़ौत ने किया।
इस दौरान सत् - प्ररूपणा सूत्रों का वाचन अनगार श्री प्रत्यक्ष सागर जी महाराज ने किया और विद्वानों ने अर्घ्य अर्पित किये।
 • इस सत्र में प्रो वृषभ जैन जी लखनऊ और डॉ विमल जी जैन जयपुर ने अपने शोधालेख प्रस्तुत किये।
• दोपहर में 2 बजे से आयोजित द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रो वृषभ जैन जी लखनऊ ने की।
संचालन डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर ने किया।
 • इस सत्र में डॉ शीतलचंद्र जी जयपुर, डॉ कमलेश जी जयपुर, पंडित पवन जी दीवान मुरैना, पंडित आशीष शास्त्री वाराणसी ने शोधालेख प्रस्तुत किये।
तृतीय रात्रिकालीन सत्र डॉ सुशील जी मैनपुरी की अध्यक्षता व पंडित पवन दीवान जी मुरैना के संचालन में सम्पन्न हुआ।
•  इस सत्र में पंडित शीतल चंद्र जी ललितपुर, मुकेश शास्त्री ललितपुर, अनिल शास्त्री सागर ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।
21 सितंबर 2019 को चतुर्थ प्रातः कालीन सत्र का शुभारम्भ पंडित लोकेश शास्त्री बासवाड़ा के मङ्गलाचरण से हुआ। इसके बाद विद्वानों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया।
 इसके बाद अनगार श्री प्रज्ञन सागर महाराज ने सत् - प्ररुपणा सूत्रों का वाचन कर विद्वानों द्वारा अर्घ्य समर्पित करवाये।
• इस सत्र में आधुनिक शिक्षा और जैनधर्म विषय पर अपना शोधालेख प्रस्तुत करते हुए अपनी ओजस्वी वाणी में डॉ. सुशील जैन मैनपुरी ने कहा कि आधुनिक शिक्षा ने ज्ञान तो दिया पर अनुभव व संस्कारों का सत्यानाश कर दिया है।
अखिल भारतवर्षीय शास्त्री परिषद के अध्यक्ष डॉ श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत ने अपने आलेख को प्रस्तुत हुए कहा कि दिगम्बर जैन मुनिराजों की चर्या का अभिन्न अङ्ग समितियाँ हैं। दिगम्बर मुनि मित्र एवं शत्रु दोनों के प्रति राग एवं द्वेष पूर्ण शब्दों का प्रयोग नहीं करते, कर्कश, कठोर, निन्दनीय शब्दों का प्रयोग नहीं करते। वे निरन्तर स्वाध्याय एवं ध्यान में लीन रहते हैं।
ब्र. विनोद जी छतरपुर ने अपने शोधालेख में कहा कि जैन दर्शन में जीवों के भेद-प्रभेद अनेक दृष्टियों से किए गए हैं।
सत्र की अध्यक्षता  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में जैन -बौद्ध- दर्शन के विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार जैन वाराणसी ने की।सञ्चालन प्रतिष्ठाचार्य विनोद जैन रजवांस ने किया।
इस दौरान आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी महाराज ने अपनी मङ्गल वाणी में देशभर से आये प्रमुख विद्वानों एवं जन समुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि समिति और गुप्ति दिगम्बर मुनियों के प्राण हैं। ये दिगम्बरत्व को सुरक्षित रखती हैं। जैन दर्शन में व्यक्ति की नहीं गुणों की पूजा की  गई है। व्यक्ति के गुण पूज्यनीय होते हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिक शिक्षा में नैतिकता का अभाव होने से आज युवा पीढ़ी संस्कारों से रहित हो रही है। नैतिक पतन होने से हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण दिनोंदिन हो रहा है जो भारतीय संस्कृति के लिए घातक है।
सङ्गोष्ठी के मध्य पंडित पवन दीवान मुरैना की कृतियों जिनयाग मण्डल पञ्चकल्याणक अर्चना पुञ्ज, द्वादश अनुप्रेक्षा पुञ्ज और नित्यमह जिन अर्चना पुञ्ज का विमोचन प्रमुख विद्वानों और जैन पञ्चायत समिति के पदाधिकारियों द्वारा किया गया।
मध्यान्ह के सत्र की अध्यक्षता प्राचार्य निहालचन्द्र बीना ने की। संचालन डॉ विमल जैन जयपुर ने किया।
• इस सत्र में डॉ पङ्कज जैन भोपाल ने गृहस्थी, माता - पिता के प्रति दायित्व, डॉ आशीष जैन शाहगड़ ने जैन साहित्य की इंटरनेट पर उपलब्धता, पंडित आलोक मोदी ललितपुर ने जैन दर्शन में अणु स्कंध का विवेचन, पूर्व प्राचार्य महेन्द्र शास्त्री मुरैना ने आचार्य विमल सागर का भारतीय संस्कृति को अवदान पर अपने शोधालेख प्रस्तुत किये।
षष्ठम् त्रिकालीन सत्र डॉ कमलेश जी जयपुर की अध्यक्षता व डॉ आशीष शास्त्री शाहगढ़ के संचालन में सम्पन्न हुआ।
• इस सत्र में राजेश शास्त्री ललितपुर ने ध्यान और उसके प्रकार, सोमचन्द्र शास्त्री मैनवार ने सम्यकदर्शन की पाँच लब्धिया, डॉ निर्मल शास्त्री टीकमगढ़ ने आहारक शरीर की विवेचना विषय पर अपने शोधपरक महत्वपूर्ण आलेख बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किये।
 राष्ट्रीय विद्वत् सङ्गोष्ठी  के तीसरे दिन रविवार को सुबह, दोपहर  सत्रों में अनेक विद्वानों ने अपने शोधालेख प्रस्तुत किये।  विद्वानों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया। इसके बाद क्षुल्लक प्रज्ञांशसागर जी महाराज ने ( बिना देखे ) तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ के दस अध्यायों का वाचन कर विद्वानों द्वारा अर्घ्य अर्पित करवाये।
• इस अवसर पर मगध विश्वविद्यालय बोधगया से आये  प्रो. नलिन के.शास्त्री ने अपना शोधालेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि जैन दर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। नई शिक्षा नीति में यदि जैन दर्शन की शिक्षाओं को समावेश किया जाय तो एक क्रांतिकारी कदम होगा।
अखिल भारत वर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद के महामन्त्री ब्र. जयनिशान्त भैया टीकमगढ़ ने मन्त्रों के कार्य विषय पर अपने शोधलेख में अनेक नए महत्त्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित किये साथ ही मन्त्रों के प्रयोग और उनकी शुद्धि अशुद्धि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा मन्त्र तभी सार्थक फल देते हैं जब वह पूरी श्रद्धा आस्था से उनकी साधना की जाय।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में जैन-बौद्ध दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो . अशोक कुमार जैन वाराणसी ने दर्शनोपयोग एवं ज्ञानोपयोग का विशिष्ट चिन्तन विषय पर अपने आलेख में कहा कि जीव में ज्ञान और दर्शन गुण की धारा निरन्तर प्रवर्तित होती रहती है।
अध्यक्षता शास्त्री परिषद् के अध्यक्ष डॉ श्रेयांस जैन बड़ौत ने करते हुए सभी लेखों की समीक्षा की तथा आचार्य विद्यानन्द जी के समाधिमरण पर उन्होंने कहा कि जैन समाज के एक सूर्य का अन्त हो गया है।  सत्र का सञ्चालन डॉ सुनील जैन सञ्चय ललितपुर  ने किया।
• मध्यान्ह के सत्र में प्रतिष्ठाचार्य विनोद जैन रजवांस ने जैनदर्शन में कालसर्प, नवग्रह आदि का महत्व विषय पर अपने आलेख में अनेक महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं से विद्वानों और जन समुदाय को प्रभावी तरीके से अवगत कराया। प्राचार्य निहालचन्द्र बीना ने जैन शास्त्रों और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में लोक की संरचना, डॉ नीलम जैन ने जैन दर्शन में भक्ति का महत्व,  डॉ सुनील सञ्चय ने जैनदर्शन में पर्यावरण संरक्षण,लोकेश शास्त्री बांसवाड़ा ने संस्कृत भाषा में अपने आलेख को प्रस्तुत किये।
आलेख प्रस्तुत होने के बाद आलेख से सम्बन्धित शङ्का समाधान में जहाँ विद्वानों ने रूचि पूर्वक प्रश्न किये वहीं उपस्थित श्रावकों ने भी अपनी शङ्काओं का समाधान मनीषियों से प्राप्त  किया।
त्रिदिवसीय राष्ट्रीय सङ्गोष्ठी में समागत सभी विद्वानों को जैन पञ्चायत ललितपुर की ओर से सम्मानित किया गया।
                         • आभार •
आयोजन को सफल बनाने में जैन पञ्चायत के अध्यक्ष अनिल अपञ्चल, महामन्त्री डॉ अक्षय टडैया,उपाध्यक्षा मीना इमलिया,  अखिलेश गदयाना, सञ्जीव ममता स्पोर्ट्स, धार्मिक आयोजन समिति के संयोजक मनोज बबीना, अक्षय अलया, अटा मन्दिर के प्रबन्धक कपूरचद्र लागोन, भगवानदास कैलगुवा, पङ्कज जैन, अखिलेश गदयाना आदि का महत्त्वपूर्ण अवदान रहा।
•  जैन पञ्चायत के अध्यक्ष अनिल जैन अञ्चल, महामन्त्री डॉ अक्षय टडैया ने किया।
मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व राज्य मन्त्री नारायण कुशवाह ग्वालियर ने आचार्य श्री विनिश्चय सागर जी को श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद लिया।

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              -  आशीषकुमार जैन ( वरिष्ठ शोध - अध्येता ) जैन - बौद्ध दर्शन विभाग संस्कृत विद्या धर्मविज्ञान संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , वाराणसी 09795300612
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