प. पू. श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर जी गुरूदेव व्यक्तित्व एवं कृतित्व ( Param Pujya shraman anagaracharya shri vinishchaysagar ji guridev vyaktiv & krititv)
श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चयसागर जी
अर्चन
(अडिल्ल छन्द)
परम पूज्य यतिराज विनिश्चय श्री गुरू ।
भेष दिगम्बर धारी मम सच्चे गुरु ।।
मन मन्दिर की हृदय वेदिका आओ जी ।
करुँ आह्वान स्थापन सन्निधिकरण जी ।।
( दोहा )
रोम रोम रोमाञ्च मेरा , प्रमुदित चित्त हुलसाय ।
शिवपुर के पन्थी नमन , योगत्रय सिर नाय ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सिन्धु अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् ।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सिन्धु अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सिन्धु अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।
उत्तम जल ये उत्तम कलशा , उत्तम बेला पूजन की ।
युगल चरण में गुरु चढ़ाऊँ , भटकन नाशूँ भव भव की ।।
गुरु विनिश्चय जल यह अर्पित , जन्म जरामृत नाशन को ।
' श्रमणाचार्य ' हो भव दधि तारक , शुभाशीष दो पावन जो ।। 1 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
भवाताप की भीषण ज्वाला , जग जिय गण भटकाती है ।
दैहिक दैविक भौतिक सुविधा , आतम रूप भुलाती है ।।
जग आतप के नाश करन को , उत्तम चन्दन कर में है ।
' वाक्केशरी ' सूरि विनिश्चय , युगल चरण में अर्पित है ।। 2 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
जग के जितने जो भी पद है , अल्प काल तक हो स्थित ।
पञ्चविधि संसार चक्र में , उपज नाश वे हैं दीखत ।।
अक्षय पद के पाने हेतु , उत्तम अक्षत शोभित कर ।
' शिवपथगामी ' गुरु विनिश्चय, करुँ समर्पित जी भर भर ।। 3 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
व्यथित हुये हैं जग जिय सारे, कामवशी हो मदनेश्वर ।
चतुर्गति चौरासी योनि, दुःखी होय नित विष पी कर ।।
मदन नाश हो बनूँ विजेता, पुष्प भेंट को लाया हूँ ।
' संयमसाधक ' गुरु विनिश्चय, भक्ति भाव मन लाया हूँ ।। 4 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
सरस मनोहर ताजे व्यञ्जन, इन्द्रिय राजा डोलत है ।
भक्ष्याभक्ष्य का नहीं ख्याल है, दिवस रात जिय भोगत है ।।
क्षुधा रोग के दमन हेतु यह, पावन नैवज अर्पित है ।
' इन्द्रियजेता ' गुरु विनिश्चय, भक्ति रस मन पागत है ।। 5 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
स्वर्ण दीप में घृत युत वाती, ज्योति जगत का हरे तिमिर ।
ज्ञानस्वभावी आतम मेरा , हुआ विभावी - संयोग समर ।।
मोह तिमिर जो सघन रूप है , नाश करन को करुँ जतन ।
' श्रुतआराधक ' गुरु विनिश्चय , भक्ति दीप ले करुँ नमन ।। 6 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
दस विध अङ्गी, धूप सुगन्धी, दिक् सुरभित हों वायु प्रसार ।
मन हो प्रमुदित - जिय आकर्षित, धूम्र उड़े ज्यों नृत्य अपार ।।
शुक्ल वहि्न में कर्म धूप दे, कर्म वंश हों सब संहार ।
' जगक्षेमङ्कर ' गुरु विनिश्चय , धूप चढ़ाऊँ वन्दनवार ।। 7 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
भौतिक जग के सारे फल हैं, दिव्य मनोहर - अक्ष समाज ।
मोक्ष महाफल शाश्वत सुखमय, ता पाने को आया आज ।।
ये फल अर्पित युगलचरण में, बने सफल ये मानव तन ।
' सङ्घनायक ' हे गुरु विनिश्चय , योगत्रय से कोटि नमन ।। 8 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
निर्मल जल ले गन्ध मिलाऊँ , अक्षत उत्तम पुष्प नैवेद्य ।
दीप धूप ले फल को लीना, अर्घ्य बनाया उर धर नेह । ।
पाने लाया पद अनर्घ्य हित, करूँ समर्पित पावन पाद ।
' श्रमणोदय ' संस्थापक यतिवर , धर्मसाधना हो निर्बाध ।। 9 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर मुनीन्द्र अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
( दोहा )
अष्ट द्रव्य अर्पित किया, भक्ति भाव उर धार ।
अब बारी गुणमाल की, वन्दन सौ सौ बार ।। 1 ।।
श्रमणाचार्य श्री बाल यतिवर , श्रमण विनिश्चय तुम्हें नमन ।
सङ्घ नायक , षट्त्रिंशत गुणयुत , वाक्केसरी तुम्हें नमन ।। 2 ।।
मध्यप्रदेश में जिला दमोह गत , ग्राम ' पथरिया ' धन्य हुआ ।
सन् 'तिहत्तर छब्बीस जून ' को , परि पुरजन आनन्द हुआ ।। 3 ।।
पिता 'रमेशचन्द्र' मात 'कुसुम' जी , जीवन बगिया छायी बहार ।
भाई बहिन गण, इष्ट जनों ने, सबने पायी खुशी अपार ।। 4 ।।
बाल्यकाल की शिक्षा पायी, तरुणाई जब आयी है ।
रुचि नहीं भव भोग विषय में, अन्तस की सुधि आयी है ।। 5 ।।
पहला दर्शन सन् नव्वे में, गुरु ' विराग ' का ' अरुण ' मिला ।
पञ्चकल्याणक पावन अवसर , वैराग्य भाव का पुष्प खिला ।। 6 ।।
सन् 'पिञ्चनवे ' त्यागा घर को , और ब्रह्मचर्य लीना धार ।
'देवेन्द्रनगर' की पुण्यधरा पर, 'ऐलक' बनकर किया विहार ।। 7 ।।
आयी पावन 'चन्द्रपार्श्व 'तिथि, दो कल्याणक जन्म - तप जान ।
हुये 'दिगम्बर' तज आडम्बर, कठिन साधना आतम ध्यान ।। 8 ।।
'चौदह दिसम्बर सन् अट्ठानवे ' , क्षेत्र 'बरासों' मुनि हुये ।
आत्म साधना - संयम पथ पर , गुरु आज्ञा में खूब पके ।। 9 ।।
शनैः शनैः आयी शुभ बेला , गुरुवर दीना पद आचार्य ।
'दो हजार सन् पाँच' कहाया, दीक्षा-शिक्षा का अधिकार ।। 10 ।।
दीक्षा रजत जयन्ती महोत्सव , 'झाँसी पावन करगुवाँ तीर्थ' ।
पार्श्व प्रभु की चरण वन्दना , सूरी पद पर हुये आसीन ।। 11 ।।
अपने गुरु के प्रियवर नन्दन , श्रमण विनिश्चय पाया सौभाग्य ।
राष्ट्र सन्त 'श्री विराग सिन्धु 'ने , दिया शुभाशीष जो बड़भाग्य ।। 12 ।।
माह 'मई चौबीस' कहायी, 'दो हजार सन् सत्रह' काल ।
'ज्येष्ठ कृष्ण चौदह' शुभ जानो , त्रय कल्याणक हुये निहाल ।। 13 ।।
'श्रमणोदय' के आप प्रणेता , जिन शासन के संवाहक ।
वाक्केसरी , शिवपथ दर्शक , वीर वाणी के उद्घोषक ।। 14 ।।
ॐ ह्रूँ श्रमण अनगाराचार्य विनिश्चयसागर मुनीन्द्र जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
( दोहा )
चरण शरण हूँ आपकी , झुक झुक करुँ प्रणाम ।
शिव पथ पन्थी शीघ्र बनूँ , नमन ‘ पवन दीवान ' ।।
।। इत्याशीर्वाद पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ।।
आरती
बाजे छम - छम - छम ,
छमा -छम बाजे घुँघरू - 2
हाथों में दीपक लेके आरती करुँ
1. विनिश्चय सागर गुरुवर हमारे ,
छत्तीस मूल गुणों को धारें ,
तो इसलिए गुरुवर आपकी
आरती करुँ वन्दना करुँ
हाथों में दीपक ....
2. गुरूवर आप है बालब्रह्मचारी ,
छोटी सी उम्र में दीक्षा धारी ,
तो इसलिए गुरुवर आपकी
आरती करु , वन्दना करुँ
हाथों में दीपक ....
3. विराग सागर जी के आप अनुयायी ,
अनुशासन और संयम भारी ,
तो इसलिए गुरुवर आपकी
आरती करुँ , वन्दना करुँ
हाथों में दीपक .....
4. सङ्घ सहित गुरूवर आप विराजे ,
हम सबके यहाँ मन हर्षाये ,
तो इसलिए गुरुवर आपकी
आरती करुँ , वन्दना करुँ
हाथों में दीपक .....
5. नगर पथरिया जन्म लिया है
इस माटी को धन्य किया हैं ,
इसलिए गुरुवर आपकी
आरती करुँ , वन्दना करुँ
हाथों में दीपक ....
बाजे छम - छम - छम ,
छमा - छम बाजे घुँघरू - 2
हाथों में दीपक लेके आरती करुँ ।
पूर्वनाम बा . ब्र . अरुण भैया
( बल्ले )
पिताजी स्व .
श्रीमान रमेशचन्द्र जी जैन ' सर्राफ
माताजी श्रीमती कुसुमदेवी
जन्म स्थान पथरिया ,
जिला दमोह ( म . प्र . )
जन्म तिथि आषाढ कृष्णा दोज
जन्म समय प्रातः 10 : 14 मिनट
जन्म दिनांक 26 जून , 1973
विशेष इनके गुरुवर का भी जन्म स्थान पथरिया है
विशेष इनके गुरुवर का भी जन्म स्थान पथरिया है
परिवार भाई ( अनिल , नवीन )
, बहन ( नीतू , नीलू )
लौकिक शिक्षा बी . ए . ( सागर महाविद्यालय )
, इण्टर ( खुरई )
धार्मिक
शिक्षा चारों अनुयोग
गृहत्याग 29 जनवरी , 1995
वैराग्य कारण साधुसङ्गति
गुरु के प्रथम दर्शन 1990 पञ्चकल्याणक महोत्सव। के अवसर पर पथरिया
में
ब्रह्मचर्य
व्रत अहार जी में , 26
फरवरी , 1995
ऐलक दीक्षा स्थान देवेन्द्रनगर , जिला पन्ना ( म .
प्र . )
ऐलक दीक्षा दिनांक 23 फरवरी , 1996
ऐलक दीक्षा गुरु परमपूज्य आचार्य श्री विरागसागर जी महाराज
मुनि दीक्षा
दिनांक 14 दिसम्बर , 1998
मुनि दीक्षा स्थान श्री अतिशय क्षेत्र बरासो जी , जिला भिण्ड ( म . प्र . )
मुनि दीक्षा
समय प्रात : काल
मुनि दीक्षा
तिथि पौष कृष्णा एकादशी
मुनि दीक्षा गुरु प . पू . आचार्य श्री
विरागसागर जी महाराज
दीक्षा तिथि विशेष तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभु व पार्श्वनाथ का जन्म - तप कल्याणक
रूचि वैय्यावृत्ति /
लेखन
मनोरञ्जन क्रिकेट
शैली अध्यात्म / प्रभावक
गुण दूसरों की मदद करना
स्वभाव सरल /
सहज
आदत सदा प्रसन्नचित्त
आचार्यपदघोषित. 2005 में ( दीक्षा
गुरुद्वारा ),
दीक्षा गुरु द्वारा
आचार्य पद 24 मई , 2017 ,
स्थान करगुवां जी , झांसी ( उ . प्र . )
आचार्य पद 24 मई , 2017 ,
स्थान करगुवां जी , झांसी ( उ . प्र . )
सर्वप्रथम क्षुल्लक
दीक्षा दी ब्र . सुरेन्द्र भैया ,
नामकरण क्षु . अर्पणसागर जी
विशेष गोम्मटेश्वर बाहुबली में 13 फरवरी 2006 को , आचार्य सहित 200 पिच्छीधारियों के सान्निध्य में)
दीक्षा दी ब्र . सुरेन्द्र भैया ,
नामकरण क्षु . अर्पणसागर जी
विशेष गोम्मटेश्वर बाहुबली में 13 फरवरी 2006 को , आचार्य सहित 200 पिच्छीधारियों के सान्निध्य में)
सर्वप्रथम ऐलक
दीक्षा दी क्षुल्लक अर्पणसागर ,
नामकरण ऐलक अर्पणसागर ( सुभाषनगर , भीलवाडा )14 दिसम्बर 2007
दीक्षा दी क्षुल्लक अर्पणसागर ,
नामकरण ऐलक अर्पणसागर ( सुभाषनगर , भीलवाडा )14 दिसम्बर 2007
सर्वप्रथम मुनि
दीक्षा दी ऐलक अर्पणसागर ,
नामकरण मुनि अर्पणसागर ( नावां सिटी , नागौर में 8 दिसम्बर 2007 को)
दीक्षा दी ऐलक अर्पणसागर ,
नामकरण मुनि अर्पणसागर ( नावां सिटी , नागौर में 8 दिसम्बर 2007 को)
वेदी प्रतिष्ठाएँ सम्पन्न 1 .
बंधाजी , 2.कटेरा , 3.पड़रा , 4.निवाड़ी , 5.मऊरानीपुर
मानस्तम्भ प्रतिष्ठायें 1.बंधाजी , 2.झुमरीतिलैया
, सम्पन्न 3.पुरुलिया 4.अहार जी ।
समवशरण प्रतिष्ठा 1.बही
चौपाटी , मंदसौर ( म.प्र.)
कुन्दकुन्दाचार्य की सन् 2008 में , बापूनगर , प्रतिमा स्थापित भीलवाड़ा ( राज . )
• रत्नों की प्रतिमा व आचार्य , उपाध्याय , साधु की प्रतिमायें स्थापित
सन् 2013 में अहार जी , टीकमगढ़ (म.प्र.)
• ' पद ' से विभूषित - 1. 'श्रमण अनगाराचार्य' गाजियाबाद ब्र. रजत भैया द्वारा, 2. 'वात्सल्य दिवाकर ' 11 नवम्बर 2007 भीलवाड़ा समाज के द्वारा 3.'वाक्केशरी’ 11 फरवरी 2009 अहमदाबाद डॉ . शेखरचन्द जैन द्वारा।
• धार्मिक कार्य सम्पन्न - शिक्षण - पूजन , ध्यान शिविर , जाप्यानुष्ठान , प्रश्नमञ्च , वात्सल्य महोत्सव , जिनेन्द्र महाअर्चना , सिद्धचक्र — कल्पद्रुम - समवशरण - भक्तामर आदि अनेक महामण्डल विधान , भव्य प्रभावना रैली , क्विज कम्पीटिशन (quiz competition) , प्रतिभावान छात्र व छात्राओं का सम्मान , शीघ्र ज्ञान शिविर , जैन भूगोल , जागरण रैली , शिक्षक सम्मेलन , जैन संस्कार संवर्द्धन सेमिनार , जैन धार्मिक मेला , प्रेरणा समारोह , विशाल अहिंसा रैली , महामस्तकाभिषेक , मन्दिर प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार आदि - आदि।
• सन् 2009 गुना ( म.प्र.) विशेष - सर्वप्रथम जैन युवा , जैन गृहस्थ व अष्ट मूलगुण संस्कार सृजन सेमिनार की शुरुआत ।
• मुनि अवस्था में प्रथम चातुर्मासि - भिण्ड ( म.प्र.) सन् 1999 में ।
• मुनि अवस्था में सम्मेद शिखर की प्रथम वन्दना - 26 मई , 2010 को ।
• आचार्य श्री द्वारा प्रथम क्षुल्लिका दीक्षा सम्पन्न - 14 अप्रैल , 2011 को सम्मेद शिखर में ( नामकरण क्षुल्लिका धर्मश्री माताजी )
• विशेष से विशेष - कभी भी एकल - विहारी नहीं हुये ।
• इन राज्यों में पड़े चरण - 1 . मध्यप्रदेश , 2 . उत्तर प्रदेश , 3 . झारखण्ड , 4 . बिहार , 5 . राजस्थान , 6 . कर्नाटक , 7 . महाराष्ट्र , 8 . छत्तीसगढ़ , 9 , गुजरात , 10 . पश्चिम बङ्गाल 11 . दिल्ली 12 . हरियाणा ।
• आजीवन सङ्घस्थ दम्पत्ति - ब्र.श्री पवन जी एवं ब्र. श्रीमती रेणु जैन , दिल्ली ।
• आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज के साथ चातुर्मास सम्मेद शिखर की पावन धरा पर ,14 जुलाई 2011 ( आषाढ शुक्ला 14 , गुरुवार ) को स्थापना ।
• गणाचार्य विरागसागर जी पाठशाला की स्थापना - शिवाड़ , जिला सवाई माधोपुर ( राज . ) में 21 अक्टूबर , 2012 को ।
• आचार्य श्री द्वारा लिखित प्रथम कृति - ' यदि तुम वृद्ध हो तो अर्धमृतक हो ।
• आजीवन सङ्घस्थ ब्रह्मचारी - बाल ब्रह्मचारी श्रीपाल भैया , जन्म 1 फरवरी , 1979 , कटेरा जिला - झाँसी ( उ . प्र . )
• निर्वाण स्थल ( तीर्थङ्कर ) - श्री सम्मेदशिखर जी , पावापुरी , चम्पापुरी , गिरनार ।
• जन्म स्थली ( तीर्थङ्कर ) - अयोध्या , श्रावस्ती , कौशाम्बी , बनारस , चन्द्रपुरी , सिंहपुरी ( सारनाथ ) , चम्पापुरी , कम्पिला , रत्नपुरी , राजगिर , शौरीपुर , कुण्डलपुर , हस्तिनापुर । • आचार्य श्री की चैतन्य कृतियाँ - 1 . श्रमण मुनि अर्पणसागर , 2 . श्रमण मुनि प्राञ्जलसागर , 3 . श्रमण मुनि संस्कारसागर , 4 . श्रमण मुनि प्रवीर सागर , 5 . श्रमण मुनि प्रवरसागर , 6 , श्रमण मुनि प्रवीणसागर , 7 . श्रमण मुनि प्रत्यक्षसागर , 8 . श्रमण मुनि प्रज्ञानसागर , 9 . क्षु . प्रज्ञांशसागर , 10 . क्षु . प्रकीर्तसागर , 11 . क्षुल्लिका धर्मश्री माताजी।
•अब तक की प्रकाशित कृतियाँ•
• मौलिक कृति •
1 . आँखों का फेर ,
2 . यदि तुम वृद्ध हो तो अर्धमृतक हो ,
3 . बढ़ते कदम,
4 . माँ के आँचल से ,
5 . मन मन्थन,
6 . महावीर के पञ्च सूत्र ,
7 . मन की तरङ्गे ,
8 . पर्युषण पर्व,
9 . आदर्श जीवन,
10 . संवेदना,
11 . ओम मङ्गलम् ,
12 . गुड स्पीच ,
13 . तीर्थ वन्दना ,
14 . बारसाणुपेक्खा (व्याख्यान) ,
15 . विनिश्चयागमोदय ग्रन्थ,
16 . कुछ खट्टे कुछ मीठे प्रश्नोत्तर ,
17 . चेतना की पुकार,
18 . मेरी स्मृति,
19 . चिन्ता नहीं चिन्तन करो,
20 . दिगम्बर जैन संस्कृति में दीक्षा ,
21 . जेल में सद्प्रेरणा,
22 . धर्मोदय,
23 . अनुत्तर यात्रा,
24 . भावों के विशुद्ध क्षण ,
25 . वेक अप ऑफ नेक्स्ट जनरेशन,
26 . विचारोदय,
27 . झाँसी सेमीनार - 2013,
28 . जीवन्त सत्य,
29 . रयणसार व्याख्यान ( अप्रकाशित ),
30 . स्वरूप सम्बोधन व्याख्यान ( अप्रकाशित ),
• सम्पादन ग्रन्थ / सङ्कलन ग्रन्थ •
1 . समयसार सागर मन्थन - मुनि समताभूषण जी,
2 . तत्त्वसार – आ . देवसेन जी,
3 . रयणसार – आ . कुन्दकुन्द जी,
4 . जैन तत्त्व मनीषा,
5 . भक्ति – प्रसून ( लघु , दीर्घ ),
6 . फूल नहीं ये काँटे है,
7 . मन्दिर के चार क्षण,
8 . वाग्मी वाणी,
9 . श्रावक धर्मामृत,
• टीका ग्रन्थ•
1 . लघु तत्त्वार्थ सूत्र – आ . बृहद् प्रभाचन्द जी,
•आशीर्वाद एवं प्रेरणा •
1 . सङ्घ परिचय ,
2 . शिवाड़ स्मारिका - 2012,
3 . मुक्तकम् ,
4 . चुटकुले एवं पहेलियाँ,
5 . मेरे आराध्य गुरु ,
6 . विनिश्चय भक्त्यंश,
7 . अर्चना सुमन,
8 . भक्ति सुमन,
9. आरती सङ्ग्रह,
10 . पाठशाला निर्देशिका,
11 . दिगम्बरत्व के चितेरे ,
12 . रजत मुनि दीक्षा स्मारिका – 2007,
13 . विनिश्चय अभ्यास पुस्तिका ,
14 . आओ रङ्ग भरे हम ,
15 . सुनो सुनाओ लाईफ बनाओ,
16 . विनिश्चय नोट बुक,
17 . प्रवचनांश,
18 . प्रमाणित प्रश्नोत्तरी,
19 . श्रमणोदय तीर्थ ,
20 . नन्दीश्वर द्वीप पूजा विधान,
21 . विनिश्चय ग्रुप परिचय पुस्तिका ,
22 . विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं
• ' पद ' से विभूषित - 1. 'श्रमण अनगाराचार्य' गाजियाबाद ब्र. रजत भैया द्वारा, 2. 'वात्सल्य दिवाकर ' 11 नवम्बर 2007 भीलवाड़ा समाज के द्वारा 3.'वाक्केशरी’ 11 फरवरी 2009 अहमदाबाद डॉ . शेखरचन्द जैन द्वारा।
• धार्मिक कार्य सम्पन्न - शिक्षण - पूजन , ध्यान शिविर , जाप्यानुष्ठान , प्रश्नमञ्च , वात्सल्य महोत्सव , जिनेन्द्र महाअर्चना , सिद्धचक्र — कल्पद्रुम - समवशरण - भक्तामर आदि अनेक महामण्डल विधान , भव्य प्रभावना रैली , क्विज कम्पीटिशन (quiz competition) , प्रतिभावान छात्र व छात्राओं का सम्मान , शीघ्र ज्ञान शिविर , जैन भूगोल , जागरण रैली , शिक्षक सम्मेलन , जैन संस्कार संवर्द्धन सेमिनार , जैन धार्मिक मेला , प्रेरणा समारोह , विशाल अहिंसा रैली , महामस्तकाभिषेक , मन्दिर प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार आदि - आदि।
• सन् 2009 गुना ( म.प्र.) विशेष - सर्वप्रथम जैन युवा , जैन गृहस्थ व अष्ट मूलगुण संस्कार सृजन सेमिनार की शुरुआत ।
• मुनि अवस्था में प्रथम चातुर्मासि - भिण्ड ( म.प्र.) सन् 1999 में ।
• मुनि अवस्था में सम्मेद शिखर की प्रथम वन्दना - 26 मई , 2010 को ।
• आचार्य श्री द्वारा प्रथम क्षुल्लिका दीक्षा सम्पन्न - 14 अप्रैल , 2011 को सम्मेद शिखर में ( नामकरण क्षुल्लिका धर्मश्री माताजी )
• विशेष से विशेष - कभी भी एकल - विहारी नहीं हुये ।
• इन राज्यों में पड़े चरण - 1 . मध्यप्रदेश , 2 . उत्तर प्रदेश , 3 . झारखण्ड , 4 . बिहार , 5 . राजस्थान , 6 . कर्नाटक , 7 . महाराष्ट्र , 8 . छत्तीसगढ़ , 9 , गुजरात , 10 . पश्चिम बङ्गाल 11 . दिल्ली 12 . हरियाणा ।
• आजीवन सङ्घस्थ दम्पत्ति - ब्र.श्री पवन जी एवं ब्र. श्रीमती रेणु जैन , दिल्ली ।
• आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज के साथ चातुर्मास सम्मेद शिखर की पावन धरा पर ,14 जुलाई 2011 ( आषाढ शुक्ला 14 , गुरुवार ) को स्थापना ।
• गणाचार्य विरागसागर जी पाठशाला की स्थापना - शिवाड़ , जिला सवाई माधोपुर ( राज . ) में 21 अक्टूबर , 2012 को ।
• आचार्य श्री द्वारा लिखित प्रथम कृति - ' यदि तुम वृद्ध हो तो अर्धमृतक हो ।
• आजीवन सङ्घस्थ ब्रह्मचारी - बाल ब्रह्मचारी श्रीपाल भैया , जन्म 1 फरवरी , 1979 , कटेरा जिला - झाँसी ( उ . प्र . )
• निर्वाण स्थल ( तीर्थङ्कर ) - श्री सम्मेदशिखर जी , पावापुरी , चम्पापुरी , गिरनार ।
• जन्म स्थली ( तीर्थङ्कर ) - अयोध्या , श्रावस्ती , कौशाम्बी , बनारस , चन्द्रपुरी , सिंहपुरी ( सारनाथ ) , चम्पापुरी , कम्पिला , रत्नपुरी , राजगिर , शौरीपुर , कुण्डलपुर , हस्तिनापुर । • आचार्य श्री की चैतन्य कृतियाँ - 1 . श्रमण मुनि अर्पणसागर , 2 . श्रमण मुनि प्राञ्जलसागर , 3 . श्रमण मुनि संस्कारसागर , 4 . श्रमण मुनि प्रवीर सागर , 5 . श्रमण मुनि प्रवरसागर , 6 , श्रमण मुनि प्रवीणसागर , 7 . श्रमण मुनि प्रत्यक्षसागर , 8 . श्रमण मुनि प्रज्ञानसागर , 9 . क्षु . प्रज्ञांशसागर , 10 . क्षु . प्रकीर्तसागर , 11 . क्षुल्लिका धर्मश्री माताजी।
•अब तक की प्रकाशित कृतियाँ•
• मौलिक कृति •
1 . आँखों का फेर ,
2 . यदि तुम वृद्ध हो तो अर्धमृतक हो ,
3 . बढ़ते कदम,
4 . माँ के आँचल से ,
5 . मन मन्थन,
6 . महावीर के पञ्च सूत्र ,
7 . मन की तरङ्गे ,
8 . पर्युषण पर्व,
9 . आदर्श जीवन,
10 . संवेदना,
11 . ओम मङ्गलम् ,
12 . गुड स्पीच ,
13 . तीर्थ वन्दना ,
14 . बारसाणुपेक्खा (व्याख्यान) ,
15 . विनिश्चयागमोदय ग्रन्थ,
16 . कुछ खट्टे कुछ मीठे प्रश्नोत्तर ,
17 . चेतना की पुकार,
18 . मेरी स्मृति,
19 . चिन्ता नहीं चिन्तन करो,
20 . दिगम्बर जैन संस्कृति में दीक्षा ,
21 . जेल में सद्प्रेरणा,
22 . धर्मोदय,
23 . अनुत्तर यात्रा,
24 . भावों के विशुद्ध क्षण ,
25 . वेक अप ऑफ नेक्स्ट जनरेशन,
26 . विचारोदय,
27 . झाँसी सेमीनार - 2013,
28 . जीवन्त सत्य,
29 . रयणसार व्याख्यान ( अप्रकाशित ),
30 . स्वरूप सम्बोधन व्याख्यान ( अप्रकाशित ),
• सम्पादन ग्रन्थ / सङ्कलन ग्रन्थ •
1 . समयसार सागर मन्थन - मुनि समताभूषण जी,
2 . तत्त्वसार – आ . देवसेन जी,
3 . रयणसार – आ . कुन्दकुन्द जी,
4 . जैन तत्त्व मनीषा,
5 . भक्ति – प्रसून ( लघु , दीर्घ ),
6 . फूल नहीं ये काँटे है,
7 . मन्दिर के चार क्षण,
8 . वाग्मी वाणी,
9 . श्रावक धर्मामृत,
• टीका ग्रन्थ•
1 . लघु तत्त्वार्थ सूत्र – आ . बृहद् प्रभाचन्द जी,
•आशीर्वाद एवं प्रेरणा •
1 . सङ्घ परिचय ,
2 . शिवाड़ स्मारिका - 2012,
3 . मुक्तकम् ,
4 . चुटकुले एवं पहेलियाँ,
5 . मेरे आराध्य गुरु ,
6 . विनिश्चय भक्त्यंश,
7 . अर्चना सुमन,
8 . भक्ति सुमन,
9. आरती सङ्ग्रह,
10 . पाठशाला निर्देशिका,
11 . दिगम्बरत्व के चितेरे ,
12 . रजत मुनि दीक्षा स्मारिका – 2007,
13 . विनिश्चय अभ्यास पुस्तिका ,
14 . आओ रङ्ग भरे हम ,
15 . सुनो सुनाओ लाईफ बनाओ,
16 . विनिश्चय नोट बुक,
17 . प्रवचनांश,
18 . प्रमाणित प्रश्नोत्तरी,
19 . श्रमणोदय तीर्थ ,
20 . नन्दीश्वर द्वीप पूजा विधान,
21 . विनिश्चय ग्रुप परिचय पुस्तिका ,
22 . विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं
अदभुत, अकल्पनीय, अगम्य ,ज्ञान मय चातुर्मास।"
डॉ. निर्मल शास्त्री
समन्वय की पृष्ठभूमि पर ज्ञान की अजस्र धारा प्रवाहित करता चातुर्मास किसे प्रभावित नहीं करताॽ अर्थात निश्चित रूप से सभी को प्रभावित करता है| ऐसा ही चातुर्मास वाक्केसरी श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चय सागर जी महाराज ससंघ का ललितपुर की पावन धरा पर हुआ जो कि अद्भुत था | अदभुत इसलिए क्योंकि इसमें समाज को वास्तविक तत्व की व्याख्या सुनने मिली | समय का सदुपयोग हुआ | समाज में समन्वय की लय देखने को मिली| पंथ वाद से रहित, संतवाद से कोसों दूर और गप्प वाद से विरहित था| इसमें मानवीय संवेदना की झलक थी तो इसमें यथार्थ जीवन जीने की कला भी थी| इसमें भगवत् सत्ता को पाने की जिज्ञासा थी तो इसमें आवाल- वृद्ध को जोड़कर संस्कार सृजित करने की संवेदना भी थी| सरलता, सहजता, और संवेदनशीलता, की, पराकाष्ठा, को, लिए, यह चातुर्मास जन जन को जीवंत करने वाला रहा |जो निश्चित रूप से अद्भुत था। अकल्पनीय क्यों रहा?अकल्पनीय इसलिए कि समाज में संशयात्मक भ्रम दूर करने में आचार्य श्री की दूरदर्शिता ने कल्पनातीत बना दिया| अनेक प्रश्नों को सकारात्मकता प्रदान कर उसमें कल्याण की भावना को भर देना ही तो इस चातुर्मास को अकल्पनीय बनाता है| यही आचार्यश्री एवं संघस्थ साधुवृन्दो ने किया| समुन्नत, सर्वमंगल, सर्व समभाव, सर्वोदयी मंगल से समाज में समभाव के संदेश को प्रसारित करके, जीवंत धर्म धर्मात्मामों, श्रावक श्राविका,और प्राणी मात्र के अस्तित्व की बात की | बुद्धि को निर्मल दृष्टि प्रदान करके सकारात्मक ऊर्जा को प्रवाहित करने का कार्य किया| करुणा दया प्रेम समन्वय सहअस्तित्व की अवधारणा को बताकर उसे चरितार्थ करने की भूमिका का सृजन करने वाला अकल्पनीय चातुर्मास ही तो था| अगम्य क्यों रहाॽ यह चातुर्मास अगम्य इसलिए रहा कि, इसमें ज्ञान की उस बस्तु व्यवस्था को दिग्दर्शित किया, जो सामाजिक हित के लिए जरूरी है| धनबल, की मारामारी से रहित, ज्ञान बल को उपलब्ध कराता, यह चातुर्मास अगम्य रहा| वर्तमान परिवेश में, आडम्बर और दिखावे की प्रवृत्ति, को नकारने वाला यह चातुर्मास सम्पन्न हुआ जिसमें विद्वानों की विचारधारा, संतों की संगति, युवाओं की संस्कार शीलता, महिलाओं की गोष्ठी, बालिकाओं की संस्कारशाला और न जाने क्या क्या रहा, जो हमें उच्चता की पृष्ठभूमि प्रदान करता है| वास्तव में जीवन की खोज और शांति की सोच प्रदान करने वाला यह चातुर्मास अगम्य ही तो रहा| इसमें मुनि चर्या की साधना प्रवचनों के माध्यम से गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन, आध्यात्म विद्या की प्राप्ति और अनेक प्रकार की, शंकाओं, का, समाधान, ज्ञान, की, गंगा, में, डुबकी लगाने, पर, विवश, कर, रहा, था| ललितपुर, की पंचायत , समाज और, आसपास की समाज ने तो इस ज्ञान यज्ञ मेंआहूति देते हुए उस आत्मविद्या रूपी भस्म को पाकर के अपने आप को धन्य माना, साथ ही महाराज श्री के भक्त गणों ने ज्ञान यज्ञ में अपनी अपनी आहूति देकर स्व आत्मा को धन्य बनाया। यह चातुर्मास आचार्य श्री के उस दिव्य स्वरूप को प्रदान करता है, जिसे भक्तों ने देखा और समझा| जिसमें आपने समाज के आवाल- वृद्ध को जोड़कर समन्वय की दृष्टि प्रदान की| धर्म समाज में समन्वय स्थापित करता है यह संदेश दिया मंदिर का धर्म घर में शांति संस्कार प्रदान करता है और घर की बात मंदिर में अशांति पैदा करती हैं| ऐसी ही सूक्ष्म मार्मिक उपदेश की क्रिया से युवा मन में संस्कारों का बीजा रोपण तो किया ही, साथ ही अपनी वात्सल्य मयी दृष्टि, प्रसन्न मुद्रा, और, आगम, पूर्ण वाणी से सभी के, मन में दिव्यता का प्रसार किया| आपने व आपके संघस्थ साधु वृंदो ने समाज को येन -केन, प्रकारेण आगम तत्व की ओर मोहने में सफलता पाई| पाप से रहित करके पुण्य की धारा में बहने की सम्यक् प्रवृत्ति प्रदान की।आपकी चर्या और, ज्ञान, से, प्रभावित समाज ने, अनेक धार्मिक कार्य करवाए। स्वल्पद्रव और अधिक भावों की समुज्ज्वलता यही विशेषता चातुर्मास को ऐतिहासिक बनाती है| वास्तव में द्रव्य की विशुद्ध भाव विशुद्ध करती है| ज्ञान की विशुद्धि चारित्र को विशुद्ध करती है और संस्कार की विशुद्धि आत्मा की भी विशुद्धि करती है| आचार्यश्री ने अपनी सरलता सहजता और सद् उपदेश की वृत्ति से मानव को मानवीयता के संस्कार प्रदान किये| यह चातुर्मास समृद्धि पुण्य वृद्धि संभाव वृत्ति, सदाचरण ऋद्धि और सम्वेग सिद्धि की पवित्रतम आधारशिला से युत्त रहा| आचार्य समन्तभद्र स्वामी के सूत्र, वाक्य ना धर्मो धार्मिकै र्विना को ध्यान में रखते हुए आचार्य श्री ने ललितपुर धर्म नगरी के श्रावकों को, धर्म रक्षा हेतु स्वयं में धार्मिक बनने के लिए युवाओं को प्रेरित किया, अर्थात युवाओं, में, धार्मिक, भावना, का, सृजन किया, यही कारण है कि यह ललितपुर का चातुर्मास वर्ष, 2019 का अदभुत अकल्पनीय, अगम्य और, ज्ञान मय तो रहा ही, साथ में संस्कारों की विशाल श्रृंखला से भी युक्त रहा है।
डॉ निर्मल शास्त्री टीकमगढ़
प्रस्तुति - रोहन जैन
Jay Jay
जवाब देंहटाएंJai jai gurudev namostu
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